02. राजस्थान – भौतिक विभाजन
- प्राग ऐतिहासिक काल (पाषाण काल) में सम्पूर्ण विश्व एक पिण्ड के रूप में था जिसे पेंजिया कहते थे, इसके चारो और सागर पेंथालासा सागर था ।
- पेंजिया के दो भाग बने –
(1) अंगारा लैण्ड (उत्तरी भाग) (2) गौडवाणा लैण्ड (दक्षिणी भाग)
- इनके मध्य टेथिस सागर था
- राजस्थान में गौंडवाना लैण्ड व टेथिस सागर के अवशेष पाये जाते है ।
- राजस्थान को सबसे पहले भौतिक प्रदेशो में वी.सी. मिश्रा ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का भूगोल’ में राजस्थान को 7 भागो में बाँटा –
(1) पश्चिमी शुष्क प्रदेश (2) अर्द्धशुष्क प्रदेश (3) नहरी प्रदेश (4) अरावली प्रदेश (5) पूर्वी कृषि औधोगिक प्रदेश (6) दक्षिण-पूर्वी कृषि प्रदेश (7) चम्बल बीहड प्रदेश
- हरिमोहन सक्सेना ने अपनी पुस्तक राजस्थान का भूगोल में राजस्थान को चार प्रदेशो में बाँटा-
- पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश (2) अरावली पर्वतीय प्रदेश (3) पूर्वी मैदानी प्रदेश (4) दक्षिणी पूर्वीपठारी प्रदेश
मरूस्थलीय प्रदेश | अरावली पर्वतीय प्रदेश | पूर्वी मैदानी प्रदेश | दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश | |
बनने का क्रम/समय | चौथा प्राचीन | सबसे प्राचीन | तीसरा प्राचीन | दूसरा प्राचीन |
युग | प्लीस्टोसीन उत्तर | प्री-क्रेम्ब्रियन | प्लीस्टोसीन प्रारम्भिक | क्रिटेशियन |
क्षेत्रफल | 61.11 प्रतिशत | 9 प्रतिशत | 23 प्रतिशत | 6.89 प्रतिशत |
जनसंख्या | 40 प्रतिशत | 10 प्रतिशत | 39 प्रतिशत | 11 प्रतिशत |
भारत के भौतिक प्रदेश का हिस्सा | उत्तर भारत का विशाल मैदान | प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश | उत्तर भारत का विशाल मैदान | प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश |
अवशेष | टेथिस सागर | गौडवाना लैण्ड | टेथिस सागर | गौडवाना लैण्ड |
वर्षा | 0-40 सेमी | 40-60 सेमी | 60-80 सेमी | 80-120 सेमी |
(1) पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश –
- 7000 वर्ष पूर्व (प्लीस्टोसीन हिमयुग) राजस्थान में वनो की उपस्थिति थी लेकिन अब थार का मरूस्थल है ।
- थार मरूस्थल का सर्वाधिक विस्तार भारत में है, यह भारत के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में फैला हुआ है ।
- सम्पूर्ण थार मरूस्थल का 62% अकेले राजस्थान में है ।
- राजस्थान में मरूस्थलीय जिले 16 (गंगानगर, हनुमानगढ, बीकानेर, चूरू, झुंझुनूं, सीकर, जैसलमेर, जोधपुर, फलौदी, बाडमेर, बालोतरा, ब्यावर, पाली, नागौर, डीडवानाकुचामन, जालौर)
- अरावली के पश्चिम में स्थित जिले -17
- सिरोही अरावली के पश्चिम में है, लेकिन मरूस्थलीय नही हैं ।
- मरूस्थल का विस्तार लगातार पश्चिम से पूर्व की ओर हो रहा है ।
- राजस्थान में 11% (लगभग दो तिहाई) भाग पर रेगिस्तान है, तथा राजस्थान के 1 लाख 75 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है ।
- पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश का सामान्य ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम है ।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्रो की समुन्द्र तल से औसत ऊँचाई लगभग 300 मीटर तथा दक्षिणी भाग की ऊँचाई 150 मीटर है, अतः थार के मरूस्थल का दक्षिणी भाग समुन्द्र तल से सबसे कम ऊँचाई पर है
- पिछले एक दशक में सर्वाधिक उल्का पिण्ड थार के रेगिस्तान में गिरे है
- थार का मरूस्थल विश्व का सबसे घना, सर्वाधिक आबादी, सर्वाधिक जैव विविधता वाला मरूस्थल है
- यह ग्रेट पेलियो आर्कटिक अफ्रीक्री मरूस्थल का पूर्वी भाग है
- यहाँ अवसादी चट्टाने पायी जाती है जिनमे कोयला व पैट्रोलियम पाया जाता है।
- पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला प्रदेश है
- डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने मरूस्थल प्रदेश को रूक्ष क्षेत्र व चीनी यात्री हवेनसांग ने इस प्रदेश को गुर्जरात्रा कहा
- रेगिस्तान का आगे बढना / मरूस्थल का विस्तार ही मरूस्थलीकरण या रेगिस्तान का मार्च कहलाता है, इसके लिए नाचना गाँव (जैसलमेर) प्रसिद्ध है
- 50 सेमी वर्षा रेखा राजस्थान को दो समान भागो में विभाजीत करती है यह वर्षा रेखा मरूस्थलीय प्रदेश की पूर्वी सीमा तथा अरावली की पश्चिमी सीमा का निर्धारण करती है
- पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश को दो भागों में बाँटा गया है
(1) शुष्क मरूस्थलीय प्रदेश (2) अर्द्धशुष्क मरूस्थलीय प्रदेश
(1) शुष्क मरूस्थलीय प्रदेश
- जिले – बीकानेर, जैसलमेर, फलौदी, बाडमेर, बालोतरा
- वर्षा – 0-25 CM
- सम (जैसलमेर) – वनस्पति रहित, न्यून्तम वर्षा वाला स्थान
- लाठी सीरीज – जैसलमेर में पोकरण से मोहनगढ तक 80 किमी लम्बी पृथ्वी के अंदर बहती मीठे पानी की जलधारा है
- 2007 में काजरी के वैज्ञानिको ने खोजी इसे भूगर्भिक जलपट्टी या लाठी सीरीज कहते है
- इसमें सेवण, धामण, करड स्वादिष्ट घास मिलती है
- चंदन नलकूप –
- लाठी सीरीज के पास जैसलमेर मे मीठे पानी का नलकूप है
- इसे थार का घडा कहते है
- जुरासिक युग की चट्टाने जैसलमेर – बाडमेर में मिली है, आकल वुड फॉसिल्स पार्क इसका उदाहरण है
- आकल / नेशनल वुड फॉसिल्स पार्क – जैसलमेर में 18 करोड वर्ष पूर्व के काष्ठ जीवाश्म मौजूद है
- बाप बोल्डर – बाप (फलौदी) में परमियन कार्बोनिफेरस काल के हिमानीकृत गोलाश्म के अवशेष मिले है
- बालूका स्तूप मुक्त / रहित क्षेत्र (Sandy Dunes Free Area) –
- फलौदी, पोकरण (जैसलमेर) व बालोतरा के मध्य फैला है।
- चट्टानी मरूस्थल का भाग (टीला रहित क्षेत्र) है जिसे हम्मादा कहते है पश्चिमी मरूस्थल का 50% भाग है
- बालूका स्तूप युक्त क्षेत्र –
- पश्चिमी मरूस्थल का 50% भाग है।
- सर्वाधिक बालूका स्तूप जैसलमेर
(2) अर्द्धशुष्क मरूस्थलीय प्रदेश (राजस्थान बांगर)
- जिले – गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, झुंझुनूं, सीकर, डीडवाना कुचामन, नागौर, जोधपुर, पाली, जालौर
- वर्ष 25-50 CM
- घग्घर का मैदान –
- जिले – गंगानगर, हनुमानगढ
- घग्घर नदी द्वारा लायी गयी उपजाऊ मिट्टी से बना
- घग्घर के पाट को हनुमानगढ़ में नाली कहते है
- शेखावाटी क्षेत्र –
- जिले – चूरू, सीकर, झुंझुनूं
- इस क्षेत्र में जमीन के नीचे चुने चुन्ने की परत की परतें पायी जाती है, वर्षा का जल चूने की परतों में बहता है इसलिए इसे आन्तरिक जल प्रवाही क्षेत्र कहते है
- चूने की परत के कारण ही यहाँ अधिक गर्मी व अधिक सर्दी पडती है
- यहाँ प्राचीन काल में नदियो द्वारा लायी गई मिट्टी जो अब अनुपजाऊ हो गई है
- अनुपजाऊ मिट्टी का मैदान बांगर कहलाता है
- इसलिए शेखावाटी क्षेत्र को बांगर प्रदेश कहते है
*नोट – नदियो द्वारा लायी गई उपजाऊ मिट्टी खादर कहलाती है
- शेखावाटी में घास के मैदान / पशु चारागाह को बीड कहते है
- शेखावाटी क्षेत्र की प्रमुख नदी कांतली है कांतली नदी का प्रवाह प्रवाह क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है व यहाँ की पहाडियाँ तोरावाटी की पहाडियाँ कहलाती है
- शेखावाटी में वर्षा जल संग्रहण के लिए बनाये गये कच्चे कुएँ को जोहड कहते है
- नागौरी उच्च भूमि –
- शेखावाटी प्रदेश व लूणी बेसिन के मध्य नागौर, डीडवाना कुचामन की भूमि जो ऊँची उठी हुई है
- औसत ऊँचाई – 300-500 मीटर
- इस क्षेत्र में सर्वाधिक खारे पानी की झीले (सांभर, डीडवाना, कुचामन) है
- नागौर व अजमेर के जल में फलोराइड होने के कारण फलोरोसिस रोग हो जाता है जिससे दाँत पीले होना, पीठ झुक जाना, व्यक्तियों के कूबड निकलने की समस्या होती है इसलिए इसे कुबडपट्टी / बांका पट्टी/ हाँच बेल्ट कहा जाता है
- जायल से पुष्कर तक का क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित है
- गोडावाड प्रदेश / लूणी बेसिन –
- पाली, विलाडा (जोधपुर),जालौर जिले में वि विस्तृत
- लूणी व उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित मैदान है
- इसे लूणी बेसिन / लूणी जवाई बेसिन कहते है।
- छप्पन की पहाडियाँ –
- मोकलरार गांव (बालोतरा) से सिवाणा तक 11 किमी लम्बी 56 पहाडियों का समूह है, इनमें ग्रेनाइट पाया जाता है
- नाकोडा पर्वत (बालोतरा) पर जैनधर्म का पार्श्वनाथ मंदिर बना है जिसे नाकांडा भैरव कहते है
- छप्पन की पहाडियो में पीपलदू, (बालोदर में हल्देश्वर महादेव मंदिर है
- पीपलदू (बालोतरा) को रेगिस्तान का माउण्ट आबू या राज. का लघु माउण्ट आबू कहते है
- सेंदडा (ब्यावर) में सर्पाकार चट्टाने मौजूद है
- मालानी आग्नेय शैल-समूह –
- मुख्यतः सिवाणा (बालोतरा) व जालौर में ग्रेनाइट तथा ज्वालामुखी रायोलाइट्स चट्टानो का निर्माण करते है
- ये पहाडियाँ गुम्बदाकार या इन्सेलबर्ग (रेगिस्तानी क्षेत्रो में ढालनुमा पाई जाने वाली खडी चट्टाने) के रूप में पायी जाती है
- इन शैलो के आधार पर जालौर, सांचौर में ग्रेनाइट उधोग खूब पनपा है।
- आबू पर्वत भी मुख्यतः ग्रेनाइट से बना है
बालूका स्तूप –
- रेत के टीले है जिन्हें धोरे भी कहते है
- बालूका स्तूप मुख्य रूप से मरूस्थल में मिट्टी के अपरदन / निक्षेपण से बनते है
- गतिशील धोरो को जैसलमेर में धरियन कहते है
- बालूका स्तूप के प्रकार –
(1) पवन की गति के अनुसार –
- अनुदै / पवनानुवर्ती बालूका स्तूप –
- पवनो के समान्तर या अनुदिश बनते है, इन्हें रेखीय बालुका स्तूपभीकहते है
- ये बालका स्तूप द्वषद्वति नदी घाटी में मिलते है सर्वाधिक जैसलमेर, बाडमेर में मिलते है
- अनुप्रस्थ बालूका स्तूप
- पवनो की दिशा के समकोण / लम्बवत बनने वाला बालूका स्तूप
- पूगल (बीकानेर) के चारों ओर, सूरतगढ़ (गंगानगर), चूरू, झुंझुनूं जिलो में मिलते है
- अवरोधी बालूका स्तूप
- ये किसी अवरोध झाडी, पेड, पहाडी के कारण बनते है
- पुष्कर, नाग पहाड में मिलते है
- बरखान / अर्द्धचन्द्रकार बालुका स्तूप –
- सर्वाधिक गतिशील है इसलिए मरूस्थलीकरण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी बालूका स्तूप है
- इनका पवनामुखी ढाल मंद व पवनविमुखी ढाल तीव्र होता है
- भालेरी (चूरू), सीकर, लूणकरणसर (बीकानेर), ओसिया (जोधपुर), डीडवाना कुचामन में है
(2) आकृति के आधार पर –
- सीफ –
- अनुदैर्ध्य बालूका स्तूप है
- पवन की दिशा के समान्तर विकसित होते है
- पैराबोलिक / परवलयाकार –
- हवा के रूख के विपरित / अग्रेजी के U आकार में विकसित होते है राज में सर्वाधिक पैराबोलिक बालूका स्तूप मिलते है
- तारा बालूका स्तूप –
- हवा अपनी दिशा बार-बार बदलती है
- मोहनगढ, पोकरण (जैसलमेर) व सूरतगढ (गंगानगर) में मिलते है।
- शब्रकाफिज –
- मरुस्थल में छोटी झाडियो के पास बनते है
महत्वपूर्ण शब्दावली –
- इर्ग –
- रेतिला मरुस्थल जहाँ वालू ही बाल हो
- इसे महान मरूरथल भी कहते है
- राजस्थान में सर्वाधिक – जैसलमेर
- हम्मदा –
- पथरीला मरूस्थल जहाँ छोटी पहाडियाँ, चट्टाने हो
- पोकरण, फलौदी व वालोतरा के मध्य बालूका स्तूप मुक्त प्रदेश
- रैग –
- मिश्रित मरूस्थल (बालू रेत व कंकड पत्थर)
- प्लाया –
- खारे पानी की बड़ी झीले
- थार के मरूस्थल में पानी भरने से भूमि की लवणता के कारण इनका जल खारा हो जाता है
- रन / टाट –
- बालूका स्तूपो के मध्य वर्षा का जल लवणीय दलदल बन जाता है जिसे रन / टाट कहते है
- सर्वाधिक जैसलमेर
- तल्ली / पोखर – रेगिस्तान के गड्डो मे वर्षा का मीठा जल
- मरहो –
- तल्ली / पोखर का जल सूखने के बाद उपजाऊ मिट्टी मरहो कहलाती है
- इसमें की जाने वाली कृषि खडीन कहलाती है
- खडीन कृषि पालीवालो द्वारा जैसलमेर में शुरू की गई
- बालसन –
- पर्वतो / चट्टानो के मध्य जल इकट्ठा होने से बनी झीले
- रोही मैदान – मरुस्थल में उपजाऊ भूमि
- भभुल्या – वायु केभंवर / चक्रवात
- थली – बीकानेर, गंगानगर, चूरू का ऊँचा भाग जो लूनी नदी के उत्तर में है
- तली – मरूस्थल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित नीचे भा भाग को तली कहते है
- पीवणा – राष्ट्रीय मरू उधान जैसलमेर में पाया जाने वाला जहरीला साँप जो डंक ना मारकर सोये हुए व्यक्ति के श्वास के साथ जहर देकर मारता है
- ढांड – बालूका स्तूप में वायु की रगड से बने गर्न
(2) अरावली पर्वतीय प्रदेश –
- पालनपुर (गुजरात) से रायसीना की पहाडी (दिल्ली) तक कुल 692 किमी लम्बी है
- राजस्थान में विस्तार – खेडब्रहमा (गुजरात) से खेतडी (झुंझुनूं तक कुल 550 किमी लम्बी अरावली का 80% भाग राजस्थान में है
- अरावली की औसत ऊँचाई – 930 मीटर
- अरावली राजस्थान को दो भागो पूर्वी राजस्थान और पश्चिमी राजस्थान में विभक्त करती है अरावली का मुख्य विस्तार 16 जिलों (उदयपुर, सिरोही, राजसमंद, अजमेर, ब्यावर, पाली, चितौडगढ, भीलवाडा, डूंगरपुर, डीडवाना कुचामन, सीकर, झुंझुनूं, जयपुर, कोटपूतली बहरोड, अलवर, खैरथल तिजारा) में है
- राजस्थान में अरावली की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर है लेकिन इसकी चौडाई उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम बढती है
- अरावली का सर्वाधिक विस्तार – उदयपुर
- अरावली का न्यून्तम विस्तार – अजमेर
- अरावली का सबसे ऊँचा पाइन्ट – गुरुशिखर (सिरोही) व निम्नतम पाइन्ट पुष्कर घाटी (अजमेर) है
- अरावली का मध्य भाग – अजमेर
- अरावली की सर्वाधिक ऊँचाई सिरोही में व न्यून्तम ऊँचाई जयपुर में है
- अरावली में सर्वाधिक वर्षा दक्षिणी भाग में होती है
- अरावली के उपनाम-
- विष्णु पुराण में – परिपत्र
- भौगोलिक भाषा में – मेरू
- उदयपुर में – आडा-वटा
- बूंदी में – आडावली
- भारत का अप्लेशियन (अरावली की तुलना अमेरिका केअप्लेशियन पर्वत से की है)
- उत्पति –
- अरावली की उत्पति प्री कैम्ब्रियन युग में हुई थी
- अरावली का निर्माण तब हुआ जब भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट समुन्द्र से अलग हो गई थी
- राज. की प्री कैम्ब्रियन चट्टानो का वर्णन ए.एम. हेरान (अलेक्ज र मैकमिलन हेरॉन) ने किया
- अरावली विश्व की प्राचीनतम वलित व अवशिष्ट पर्वतमाला है
- अरावली मोडदार पर्वत है
- अरावली पर्वतमाला का उदगम अरब सागर के मिनिकाय द्वीप (लक्षद्वीप) से माना जाता है
- अरावली पर्वत की मूल जड़ अरब सागर से शुरू होने के अरब सागर कारण अरब सागर को अरावली का पिता कहते है
- अरावली की विशेषता –
- इसका दक्षिणी भाग ग्रेनाइट चट्टानो से बना है
- यह मरुस्थल के पूर्व में विस्तार को रोकती है
- सर्वाधिक नदियो का उद्गम, सर्वाधिक सघन वनस्पति, खनिजो की बहुतायत अरावली में पायी जाती है
- अरावली के पूर्वी ढालो पर वनस्पति अधिक सघन है
- अरावली को भारत की महान जल विभाजक रेखा कहा जाता है यह अरब सागर तथा बंगाल की खाडी की नदीयो को अलग करती है अरावली थार के रेगिस्तान को चंबल की घाटी से अलग करती है।
- अरावली को तीन भागो में विभाजीत किया गया है
(1) उत्तरी अरावली –
- अलवर, खैरथल तिजारा, सीकर, झुंझुनूं जयपुर, दौसा, कोटपूतली-बहरोड
चोटी | जिला | ऊँचाई |
रघुनाथगढ़ | सीकर | 1055 मीटर |
मालखेत | सीकर | 1052 मीटर |
लोहागर्ल | झुंझुनूं | 1051 मीटर |
भोजगढ़ | झुंझुनूं | 997 मीटर |
खो | जयपुर | 920 मीटर |
भैरांच | अलवर | 792 मीटर |
बाबाई | जयपुर | 792 मीटर |
बरवाडा | जयपुर | 786 मीटर |
बबाई | झुंझुनूं | 780 मीटर |
बिलाली | कोटपूतली बहरोड़ | 775 मीटर |
मनोहरपुरा | जयपुर | 747 मीटर |
बैराठ | कोटपूतली बहरोड़ | 704 मीटर |
सिरावास | अलवर | 651 मीटर |
भानगढ़ | अलवर | 649 मीटर |
जयगढ़ | जयपुर | 648 मीटर |
मध्य अरावली के दरें –
चोटी | जिला | ऊँचाई |
टॉडगढ / गोरमजी | ब्यावर | 924 मीटर |
तारागढ़ | अजमेर | 873 मीटर |
नागपहाड़ | अजमेर | 795 मीटर |
- पहाडो के मध्य तंग रास्ता ही दर्श / नाल / घाट कहलाता है
- बर दर्श (ब्यावर) ब्यावर को बर से जोडता है
- पखेरिया दर्श (ब्यावर) ब्यावर से मसूदा मार्ग
- शिवपुरा घाट – व्यावर
- सूरा घाट दर्श व्या ब्यावर
- गोरमघाट दर्श राजसमंद
- कामलीघाट दर्श राजसमंद
- उत्तरी मध्यवर्ती अरावली में सर्वाधिक अन्तराल विधमान है
(3) दक्षिणी अरावली –
चोटी | जिला | ऊँचाई |
गुरू शिखर | सिरोही | 1722 मीटर |
सेर | सिरोही | 1597 मीटर |
दिलवाड़ा | सिरोही | 1442 मीटर |
जरगा | उदयपुर | 1431 मीटर |
अचलगढ़ | सिरोही | 1380 मीटर |
कुम्भलगढ़ | राजसमंद | 1224 मीटर |
धोनिया | उदयपुर | 1183 मीटर |
ऋषिकेश | सिरोही | 1017 मीटर |
कमलनाथ | उदयपुर | 1001 मीटर |
सज्जनगढ़ | उदयपुर | 938 मीटर |
सायरा | उदयपुर | 900 मीटर |
लीलागढ़ | उदयपुर | 874 मीटर |
डोरा पर्वत | जालौर | 869 मीटर |
नागपानी | उदयपुर | 867 मीटर |
गोगुन्दा | उदयपुर | 840 मीटर |
इसराना भाखर | जालौर | 839 मीटर |
रोजा भाखर | जालौर | 730 मीटर |
झारोला भाखर | जालौर | 588 मीटर |
- देवगढ (राजसमंद), उदयपुर, सिरोहीतकविस्तार है
- अरावली की सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर माउण्ट आबू (सिरोही) में है, कर्नल टॉड ने गुरुशिखर को संतो का शिखर / हिन्दू ओलम्पस कहा
- गुरू शिखर का नाम दत्तात्रेय ऋिषि के नाम पर ही गुरू शिखर पड़ा इसकी ऊँचाई 1722 मीटर है लेकिन इस पर दत्तात्रेय ऋषि का 5 मीटर ऊँचा मंदिर बना है
दक्षिणी अरावली के नाल / दरें –
- फुलवारी की नाल – उदयपुर में है, यह राजस्थान की सबसे बडी नाल है
- केवडा की नाल – उदयपुर
- देबारी दर्श – उदयपुर
- हाथी दर्श – उदयपुर में है यह पिंडवाडा (सिरोही) से उदयपुर की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित है
- हाथी गुढा की नाल कुम्भलगढ किले के पास (राजसमंद) स्थित है, यह पाली को राजसमंद से जोड़ता है
- सोमेश्वर की नाल – पाली
- देसूरीकीनाल – पाली
प्रमुख पहाड़ियाँ –
- गिरवा – उदयपुर के चारो ओर तश्तरीनुमा पहाडियाँ
- भाकर सिरोही की तीव्र ढाल वाली पहाड़ियाँ
- देशहरो – उदयपुर में जरगा व रागा की पहाडियाँ जो वर्षभर हरी भरी रहती है
- मेवल – डूंगरपुर-बांसवाडा के मध्य का पहाडी भाग
- मेरवाडा पहाडियाँ ब्यावर अजमेर की पहाडियाँ – ये पहाडियाँ मेवाड को मारवाड से अलग करती ह ै
- घोसी पहाडी झुंझुनूं (740 मीटर)
- हर्ष की पहाडी सीकर (820 मीटर) में है इस पर हर्षनाथ मंदिर बना है
- उदयनाथ पर्वत अलवर
- मालाणी पहाडी बाडमेर जालौर
- आडावल पर्वत बूंदी
- मोडा पहाड – झुंझुनूं
- मगरा – अरावली से अलग अपशिष्ट पहाडियाँ
(3) पूर्वी मैदानी प्रदेश –
- जिले – अलवर, कोटपूतली-बहरोड, खैरथल तिजारा, डीग, भरतपुर, जयपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, पूर्वी मैदानी प्रदेश भीलवाडा, चितौडगढ़, डूंगरपुर, बाँसवाडा, प्रतापगढ
- पूर्वी मैदानी भाग चम्बल, बनास, बाणगंगा, माही नदियों द्वारा लाई जलोढ / दोमट मिट्टी से बना है
- सर्वाधिक उपजाऊ भौतिक विभाग है इसलिए इसे खाधान्न का का कटोरा भी कहते है
- इसका ढाल पूर्व की ओर है व सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला भाग है
- पूर्वी मैदानी प्रदेश को मुख्यतः चम्बल बेसिन 4 भागों में विभाजित किया
(1) चम्बल बेसिन –
- सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर में चम्बल नदी द्वारा निर्मित मैदान है
- चम्बल नदी के आस-पास ऊँची नीची उत्खात स्थलाकृति डांग कहते है
- सर्वाधिक डांग भूमि करीली में है इसलिए करौली को डांग की रानी कहते है
- चम्बल बल नदी के प्रवाह से मिट्टी में से चम्बल के बीहड़ कटाव (अवनालिका अपरदन) के कारण गहरी गहरी घाटिया बन जाती है जिन्हें बीहड कहते है 25 यह कोटा, सवाईमाधोपुर, धौलपुर तक फैली है
(2) छप्पन बेसिन / माही बेसिन –
- माही नदी का प्रवाह क्षेत्र जिसमें बाँसवाडा, प्रतापगढ, डूंगरपुर जिले आते है
- प्रतापगढ का प्राचीन नाम कांठल था प्रतापगढ मे माही नदी का बहाव क्षेत्र कांठल का मैदान कहलाता है।
- बांसवाडा से प्रतापगढ के मध्य 56 गाँव, नदी-नालो का समूह है इसे छप्पन का मैदान कहते है
- डूंगरपुर-बांसवाडा का क्षेत्र वागड / मेवल / व्याघ्रवाट के नाम से जाना जाता है
(3) बनास बेसिन –
- बनास नदी व उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित मैदान है, इसका ढाल पूर्व की ओर है
- जलोढ मिट्टी पायी जाती है। जो कृषि के लिए उपयुक्त है
- औसत ऊँचाई – 280-500 मीटर
- बनास बेसिन का उत्तरी पूर्वी भाग मालपुरा-करौली के नाम से जाना जाता है
- यह टोंक, सवाईमाधोपुर, करौली में फैला है
- इस क्षेत्र को ए.एम. हेरॉन ने ‘तृतीय पेनिप्लेन’ नाम दिया जहाजपुर (भीलवाडा) का क्षेत्र खेराड व मालपुरा (टोंक) का क्षेत्र मालखेराड कहलाता है
(4) बाणगंगा बेसिन –
- बाणगंगा नदी के बहाव क्षेत्र का मैदान है जो जयपुर, दौसा, डीग, भरतपुर जिलों मेंपायाजाता है
- रबी फसल (उनालू)
(4) दक्षिण – पूर्वी पठारी प्रदेश –
- हाडौती का पठार भी कहते है
- यह मध्यप्रदेश में स्थित मालवा के पठार का उत्तरी भाग है
- औसत ऊँचाई – 500 मीटर
- जिले – कोटा, बूँदी, बारां, झालावाड
- हाडौती पठार के मुख्यत : दो भागो में बाँटा गया है
- विंध्यन कगार भूमि
- दक्कन लावा पठार
- विंध्यन कगार भूमि – करौली, धौलपुर, सवाईमाधोपुर में फैला है
- चम्बल व बनास नदी के मध्य का भाग है।
- बलुआ पत्थरसेनिर्मित है।
महान सीमा अन्श (Great Boundary Fault) –
- अरावली पर्वतमाला व विध्यांचल पर्वत का मिलन स्थल होने के कारण महान सीमा भ्रंश कहते है
- अरावली के पूर्व में स्थित है
- बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर, कोटा, चितौडगढ में फैला है
- दक्कन लावा पठार –
- कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड में फैला है
- यहाँ बूंदी की पहाडियो का सर्वोच्च शिखर सतुर है व बूंदी के प्रमुख दरें लाखेरी दर्श, रामगढ-खटगढ दर्श, जेतावास दर्रा है
- मुकन्दरा की पहाडियाँ –
- कोटा (सर्वाधिक) व झालावाड जिले में विध्याचंल पर्वतमाला काहीविस्तार है।
- शाहबाद उच्च क्षेत्र – बारां
- रामगढ़ (नारा) के पास घोडे के नाल की आकृति (हॉर्स शू आकार) की पर्वत श्रेणी है रामगढ़ बारा) जिसके मध्य राजस्थान में एकमात्र उल्का पिण्ड गिरने से बनी झील है
- विश्व भू-विरासत ने क्रेटर के रूप में मान्यता दी
- डंग गंगधर उच्च भूमि –
- झालावाड का पठारी भाग
राजस्थान के प्रमुख पठार –
- उडिया का पठार – सिरोही
- राज. का सबसे ऊँचा पठार जो 1360 मीटर ऊँचा है।
- गुरुशिखर के नीचे स्थित है
- भोराट का पठार – 1225 मीटर
- गोगुन्दा (उदयपुर) से कुम्भलगढ (राजसमंद) के मध्य स्थित है
- राजस्थान का दूसरा ऊँचा पठार हैं
- भोराट पठार की सबसे ऊँची चोटी – जरगा
- आबू का पठार – सिरोही
- राजस्थान का तीसरा ऊँचा पठार (1200 मीटर) है जिस पर राज. का सबसे ऊँचा शहर माउण्ट आबू है
- मेसा का पठार – 620 मीटर
- चितौडगढ दुर्ग स्थित है
- लसाडिया का पठार – सलूम्बर
- जयसमंद झील के पूर्वी भाग में
- उपरगाल का पठार –
- भैसरोडगढ़ (चितौडगढ) से बिजौलिया (भीलवाडा) तक हाडौती के पठार का ही भाग है
- गानदेसरा का पठार – चितौडगढ
- भोगट का पठार –
- उदयपुर, सलूम्बर, डूंगरपुर, सिरोही में फेला है जहाँ भील जनजाति निवास करती है।